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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Tragedy

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Tragedy

कैसे होता है

कैसे होता है

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कहीं दिन तो कहीं अंधकार कैसे होता है

मैं सोचता हूं अक्सर ये संसार कैसे होता है

हर सपनो को मैंने रोप कर रखा आंगन घर में

खामोश हो हर नाकामी पर रो लेता हूं छुपकर मैं

मुझे पता नहीं ये साल भर त्योहार कैसे होता है

कहीं दिन तो कहीं अंधकार कैसे होता है

मैं सोचता हूं अक्सर ये संसार कैसे होता है

राम ये किस्मत का खेल नहीं होता कोई यहां

अमीरों के निष्ठुर ज़मीर की बस्तियों का है जहां

उन्हें पता औरों के जीवन जद पर अधिकार कैसे होता है

कहीं दिन तो कहीं अंधकार कैसे होता है

मैं सोचता हूं अक्सर ये संसार कैसे होता है।


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