कैदी
कैदी


रात क्या दिन क्या,
हमारे लिए तो सभी कठिन।
एक गुनाह से
जीना तो क्या,
मरना भी कठिन।
वहीं लोग वही साये
जाऐं तो किधर जाऐं।
कोठरी तो क्या कोने से
खिसकना भी कठिन
एक गुनाह से...
ऊंची ऊंची दीवारों में,
सीमित लोगो के घेरे में,
भागना तो क्या, सोचना
भी कठिन।
एक गुनाह से...
जंजीरे बन गई हाथों
का गहना,
किसी का भाई ना,
अब कोई बहना।
याद करना तो क्या
भूल पाना भी कठिन।
एक गुनाह से...
सींकचो में बंद तन है,
धड़कनों में घुटता मन है।
इंसान तो क्या,
भगवान के लिए भी माफ़
करना कठिन है।
एक गुनाह से....।