काव्य और जननी
काव्य और जननी
चहल कदमी जब भी होगी,
मेरे शब्दों की
अनुगूँज होगी मेरी कविता की!
चहलकदमी जब भी होगी,
मेरे हृदयों के स्पंदन की
अभिव्यक्ति होगी मेरी कविता की!
चहलकदमी जब भी होगी,
मेरे सुरों में आक्रोश की
गर्जना होगी मेरी कविता की!
पर चहलकदमी जब भी होगी,
छिपी हुई मासूमियत की
झलक होगी मेरी माता की!
और चहलकदमी जब भी होगी,
मेरे उपलब्धियों, मेरे संस्कारों की
माँ की दीक्षा की ही देन होगी!
और चहलकदमी जब भी होगी,
मेरे अस्तित्व के हर रोम की
माँ ही बस प्रतिबिम्बित होगी!
काव्य और जननी से बढ़कर,
परमात्मा की क्या भेंट होगी !