काश मै घड़ा होता
काश मै घड़ा होता
काश मैं घड़ा होता
होता गोल मटोल,
देता, शीतल जल
ठन ठना, ठन।
अलग अलग, शक्लों सूरतों
लम्बा चपटा ओर होता मोटा,
होता कुम्हार का आभारी
जिसने मेरा रूप बनाया।
उसके बच्चे, बीबी मुझ में रंग
निराले भरते, ओर खूब इतराते,
रंग बिरंगी, गुल्लक सबको भाय
दादा दादी, की याद दिलाती।
गिलास, कुल्लड़ मैं शिकंजी
और लस्सी, सबके होश उड़ाए,
नन्ही मुन्नी की पसंद है, गुल्लक
मामा नानी के पैसे से इठलाती।
मेरे संगी साथी कहीं हो गए, गुम
और परात, कुणालि ओर कड़ाहे,
इन सब को ना ,जाने अब कोय
स्टील, ग्लास ने बेगाना कर दिया।
हाय रे जमाना, हाय रे फैशन
मैं फिर लौट कर, आ रहा हूं,
मेहनत हिम्मत से खुद्दारी से
अपना वो गौरव, वैभव।
अपनी पीढ़ी, को दिखाऊंगा
अपना वो गौरव, वैभव
अभी तो मुझे, धरती मां
का प्यार जताना व बढ़ाना।
परिवार बढ़ाना है, बस
नए सांचे में ढलना है,
किसी के आगे रोना, नहीं
बस पहचान, बनानी हैं।
