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Jagrati Verma

Romance

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Jagrati Verma

Romance

काफ़ी है

काफ़ी है

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माना तुम पास नहीं

इस पर ये दिल उदास नहीं

बहुत ज़्यादा दिल की आस नहीं

यूँ ही गुज़रे कल जैसा माज़ी है

बस साथ रहो तुम काफ़ी है


अभी तो लंबी राह सफर करनी है

यहाँ सदियाँ गुज़र करनी हैं

कुछ जज्बात बयां हुए हैं

बाकी अभी बाकी हैं

बस साथ रहो तुम काफ़ी है


थोड़ा रुठना - मनाना है

ये तो हरदम का फसाना है

नाराज़गी है गर तो ज़ाहिर कर दो

मेरी नाराज़गियों की तो वैसे भी तुम्हे माफ़ी है

बस साथ रहो तुम काफ़ी है।


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