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अजय गुप्ता

Abstract

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अजय गुप्ता

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कालचक्र-३

कालचक्र-३

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पेड़ों को काट कर,

वहां इमारत बन गई।

पक्षियों के नीड़ पर

मानव बस्ती बन गई।


एक नन्हा बरगद, 

निकल आया मुडेर के पास।

न मिट्टी न पानी,

बस खुला आसमान।


उसने पहले जड़े गहराई,

फिर उसमे जटाएं निकल आयी।

जटाएं चल पड़ी नीचे की ओर

मिट्टी और पानी की खोज में,


पौधा दरख़्त बन गया,

मुंडेर को फोड़ के,

इमारत दरकी,

जमीनदोज हो गई।


बरगद का पेड़,

खंडहर पर काबिज

और फिर एक बार,

पक्षियों का नीड़ बन गया।


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