STORYMIRROR

Dheerendra Panchal

Tragedy Action

4  

Dheerendra Panchal

Tragedy Action

काल के आगे महाकाल

काल के आगे महाकाल

1 min
253

तुझमें पहले ही गूंज रही थी,

पीड़ा की वो मौन बयानी।

भस्म भभूत तन, लोचन जलते,

डमरू गूंजे, रुद्र कहानी।


क्रोध में जब महाकाल आए,

काँपे नभ औ’ लोक सभी।

शूल नचाते, तांडव करते,

बिखरी अग्नि, जली धरा भी।


सती जली, शिव मौन खड़े थे,

अश्रु नयन में रुके पड़े थे।

ह्रदय व्यथा से व्याकुल भारी,

जग में गूंजे पीर पुरानी।


"वीरभद्र! अब काल बनो तुम,

अहंकार का मान हरो तुम।

जिसने सती की ज्योति बुझाई,

उसको अब भस्म करो तुम।"


रण में उठी हुंकार भयंकर,

दिग्-दिगंत में व्याप्त अँधेरा।

रुधिर से भीगा नभ का आँचल,

धरती कांपी, काँपा सवेरा।


जब गर्ज उठे वीरभद्र रण में,

रुधिर बहे उस क्रूर गगन में।

दक्ष कटा, और यज्ञ भी टूटा,

शिव की सत्ता दिखी पवन में।


देव डरे, और असुर भी भागे,

सृष्टि थर्राई, नभ भी कांपे।

ब्रह्मा, विष्णु, देव सभी थे,

महाकाल के भय से काँपे।



महाकाल के क्रोध को देख

ब्रह्मांड भी सारा कांप गया

काल स्वयं झुक कर बोला,

"प्रभु! आज मैं भी हार गया।"


हर-हर महादेव!




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy