कागज की कश्ती
कागज की कश्ती
कागज की नाव बनाई एक मैंने
सारे सपने संजोए हुए थे वो
रख दिये इस नाव में,
बारिश के मौसम में भरे हुए
पानी में नाव को रखा मेने,
कुछ बुंदे वापस गीरी,
n> थोड़ी इधर उधर होकर वो ठहर गई कुछ इस कदर फिर आईं जोर की बारिश तो मेरी नाव टूट गई, साथ ही टूट गए मेरे, सारे सपने मेरे अरमान।