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Aarti Sirsat

Romance

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Aarti Sirsat

Romance

"काग़ज़ के फूल"

"काग़ज़ के फूल"

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तुम्हारे प्यार की महक उनमें छाने लगीं है......

कागज के फूल से भी अब खूशबू आने लगीं है......

धूल में लिपटे पड़े थे बरसों से किसी अलमारी में,

छूते ही बोल पड़े, न कर आजाद इस धूल से जान मेरी जाने लगीं है......

रहना चाहूं मैं इसी जेल में, जो लगेगा हाथ तुम्हारा, तुम मुझे तोड़कर फैक दोगें,

सोच- सोचकर चाहतें मेरी बिखरने लगीं है......

छेड़ रही है पवन की पुरवाई,

टूटने पर मुझे मजबूर कर रही है देखों जुदाई के गीत वो गाने लगीं है......

रहने दो मुझे कागज ही फूल मत बनाओं

जज्बातों से भर दो मुझे, कलम भी अब कहने लगीं है......

ये कैसीे मौहब्बत में मोह माया छाईं है

गुलाब में काँटे और कागज के फूल से खूशबू आने लगीं है......



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