जय श्रीराम
जय श्रीराम
आज पहली बार थोड़ा अंदर से टूटा हुं,
किसी और से नही मैं खुद से ही रूठा हुं|
जीवन के ऐसे अजीब मोड पर खड़ा हुं,
जहाँ मैं दोनो ही राहो से एक सा जुड़ा हुं||
वक्त भी कभी-कभी ऐसे मंजर दिखता है,
बिना कुछ कहे हमे बहुत कुछ सिखाता है|
इंसान की बेबसी को सरेआम दर्शाता है,
कर्मफल के नाम पर हमें ही बहलाता है||
समय रहते हम सही चुनाव नही कर पाते,
पछतावे में गुजारते है कई दिन कई रातें|
सब आगे बढ़ने की करते रहते है बाते,
बीती यादो में बुरी तरह से है जकड़ जाते||
छूटा हुआ तीर कभी भी लौट कर नही आता,
कोई भी अपने भूतकाल को बदल नही पाता|
इस कश्मकश में वर्तमान को भी जी नही पाता,
जाने अंजाने में खुद ही भविष्य में काटे बिखेर जाता||
कितनी मुश्किलें हो हराकर आगे बढ़ा हुं,
जीवन की हर सीढ़ी को साहस से चढ़ा हुं|
आज पहली बार थोड़ा अंदर से टूटा हुं,
किसी और से नही मैं खुद से ही रूठा हुं||