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sunil patil

Tragedy

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sunil patil

Tragedy

जय श्रीराम

जय श्रीराम

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आज पहली बार थोड़ा अंदर से टूटा हुं,

किसी और से नही मैं खुद से ही रूठा हुं|

जीवन के ऐसे अजीब मोड पर खड़ा हुं,

जहाँ मैं दोनो ही राहो से एक सा जुड़ा हुं||


वक्त भी कभी-कभी ऐसे मंजर दिखता है,

बिना कुछ कहे हमे बहुत कुछ सिखाता है|

इंसान की बेबसी को सरेआम दर्शाता है,

कर्मफल के नाम पर हमें ही बहलाता है||


समय रहते हम सही चुनाव नही कर पाते,

पछतावे में गुजारते है कई दिन कई रातें|

सब आगे बढ़ने की करते रहते है बाते,

बीती यादो में बुरी तरह से है जकड़ जाते||


छूटा हुआ तीर कभी भी लौट कर नही आता,

कोई भी अपने भूतकाल को बदल नही पाता|

इस कश्मकश में वर्तमान को भी जी नही पाता,

जाने अंजाने में खुद ही भविष्य में काटे बिखेर जाता||


कितनी मुश्किलें हो हराकर आगे बढ़ा हुं,

जीवन की हर सीढ़ी को साहस से चढ़ा हुं|

आज पहली बार थोड़ा अंदर से टूटा हुं,

किसी और से नही मैं खुद से ही रूठा हुं||


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