जय अखंड भारत
जय अखंड भारत
शक्ति ऐसी है नहीं संसार में कोई कहीं पर,
जो हमारे देश की राष्ट्रीयता को अस्त कर दे ।
ध्वान्त कोई है नहीं आकाश में ऐसा विरोधी,
जो हमारी एकता के सूर्य को विध्वस्त कर दे !
राष्ट्र की सीमांत रेखाएँ नहीं हैं
बालकों के खेल का कोई घरौंदा,
पाँव से जिसको मिटा दे ।
देश की स्वाधीनता सीता सुरक्षित है,
किसी दश-कंठ का साहस नहीं,
ऊँगली कभी उसपर उठा दे ।
देश पूरा एक दिन हुंकार भी समवेत कर दे,
तो सभी आतंकवादियों का बगुला टूट
जाए ।
किन्तु, ऐसा शील भी क्या,
देखता सहता रहे जो आततायी मातृ-मंदिर की धरोहर लूट जाए ।
रोग, पावक, पाप, रिपु प्रारंभ में लघु हों भले ही किन्तु,
वे ही अंत में दुर्दम्य हो जाते उमड़कर ।
पूर्व इस भय के की वातावरण में विष फैल जाए,
विषधरों के विष उगलते दंश को रख दो कुचलकर ।
झेलते तूफ़ान ऐसे सैकड़ो आए युगों से,
हम इसे भी ऐतिहासिक भूमिका में झेल लेंगे ।
किन्तु, बर्बर और कायरता कलंकित कारनामों की
पुनरावृति को निश्चेष्ट होकर हम सहेंगे ।