जो हुआ है हादसा है
जो हुआ है हादसा है
दीनता है, दुर्दशा है,
जो हुआ है हादसा है।
प्रकृति रचती खेल अपने,
ध्वंस उनमें ही बसा है।
हादसों से जूझने का,
आदमी को भी नशा है।
मौत को धकिया रहा है,
जीतने की लालसा है।
प्रकृति पर उसने कहीं तक,
जीत का फन्दा फंसा है।
ज्ञान के लांघे क्षितिज कुछ,
सफलता पाकर हँसा है।
आदमी है आदमी ही
विवशताओं में फंसा है।
हार क्यों माने, उसे भी,
प्रकृति का ही वार सा है।