कबूतर
कबूतर
कि बन्द किवाड़ों में कबूतर का एक तहखाना है,
जहां अंधेरों की गुच्छियां और गहरा फ़साना है।
रोज रोज मेरे खतों को गायब करना उसका तराना है,
और उन खतों का तिनका तिनका जोड़ घर बनाना है।
मेरी मासूका का मेरे इंतजार में रो-रोकर बुरा नजराना है,
हाल ए दिल है कैसा मेरा ये तो केवल कबूतर ने जाना है।
मैं लिखता रहा ख़त और रह गया एक दीवाना है,
उसकी याद में सुबह श्याम बैठना दिल लगाना है।