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Shobha Goyal

Abstract

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Shobha Goyal

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चुप चुप गुम सुम

चुप चुप गुम सुम

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अक्सर मेरा मन 

चुप चुप गुम सुम 

रहना चाहता कुछ क्षण


क्या-क्या छिपा है 

मन के अंदर 

छिपे हैं एक कोने में 

सुख दुख के अनगिनत पल

कोई पीड़ा 

अंदर है दफन

है छोटे से मन में

दुरूह है पीडा के क्षण


अकल्प सी कोई बात 

अधुरा कोई संकल्प

आईना जैसे टूटा 

बिखरा बिखरा

है कांच जैसा मन

कोई राज गहरा

अंदर है दफन

इस छोटे से मन में

छिपे हैं संताप के क्षण


लगे है अभिव्यक्ति पर ताले

जज़्बातों पर पहरे डाले

जज्ब है अंदर

उथल पुथल के क्षण

चीखती कोई आवाज

अंदर है दफन

इसी पीड़ा प्रवण में

गुप चुप पीता है मन


क्षणिक मिलन या

विरह के क्षण

सोती है धड़कन

रूठा है दर्पण

कोई ख्वाब

अंदर है दफन

इसी कमोबेश में

जीती हूं हर क्षण।


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