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Shobha Goyal

Abstract

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Shobha Goyal

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आषाढ़ का पहला सावन

आषाढ़ का पहला सावन

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आषाढ़ का पहला पहला सावन

दे रहा होले से दिल पर आहट

छेडा है कोई मघुर धुन सरगम

या होने लगी कही सुगबुगाहट


अनभिज्ञ थी कब से पात पर ठहरी

दिल से थी मै निपट वियाबान जंगली

सामने था मेरे खुला नीलाभ आसमां

मै शून्य मे ही रही यहां वहां विचरती 


मौन है नीले व्योम की अनगूंज भाषा

पलने लगी जीवन की कोई अभिलाषा

मुखरित हुई चेतना की कुछ जिज्ञासा

प्रवलित हुई मन से मन की आशा


संकेत मिला गरजते घन मेधो का

पलको पर सांध्यस्वप्र सजाने का

तन बारिश की बूंदों से हुआ सरोबार

मन के अंदर बैठा पक्षी भी हुआ विभोर


मोम सी पिघलती रही तस्वीरें

बूंद बूंद बहते रहे मेरे जज़्बात

रात भर चहकती रही दामिनी

सिरहन गान करती राग विराग


झूम झूम कर चारो ओर नाच रहा है मोर 

दिल से दिल को ले गया वो काला चितचोर।


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