इन दिनों
इन दिनों
ज़िक्र ए ख़ुदा है इन दिनों,
बरपा कहर है इन दिनों।
ख़ुद से डरे सहमे से क्यों,
चारों पहर है इन दिनों।
सुनसान हैं राहें सभी,
उजड़ी डगर है इन दिनों।
दहशत नही कम हो रही,
फ़ैला ज़हर है इन दिनों।
आज़ाद हर शय, कैद में,
इंसा मगर है इन दिनों।
लगता कयामत की घड़ी,
है आ गई फ़िर इन दिनों।
कुदरत से माफ़ी मांग लो,
अब क्या ख़बर है इन दिनों ?
