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Babita Kushwaha

Abstract

3.8  

Babita Kushwaha

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बहु भी बेटी बन सकती है

बहु भी बेटी बन सकती है

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दुनिया वालो से अलग जा कर तो देखो,             

बहू भी बेटी बन सकती है बना कर तो देखो।


छोड़ दो वो छोटी सोच जो तुम्हे किचन में जाने से रोके,

बहू के लिए भी कभी चाय बना कर तो देखो।


तोड़ दो समाज का वो बंधन जो तुम्हारे दिमाग पर हावी रहे,

घूँघट के अंदर की उस लड़की को

सलवार-कुर्ता पहना कर तो देखो।


वो भी तुम्हे माँ की ही तरह प्यार और सम्मान देगी,

पराये घर की उस बेटी को कभी गले लगा कर तो देखो।


जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे,

चाहते हो अपनी लाड़ली को सुखी,


तो दूसरे घर की उस लाड़ली को अपना

बना कर तो देखो। करेगी वो सेवा तन-मन से तुम्हारे बुढ़ापे में,


कभी उसकी बीमारी मे उसके

काम में हाथ बँटा कर तो देखो।


दुनिया वालो से अलग जा कर तो देखो,

बहू भी बेटी बन सकती है बना कर तो देखो।


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