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Krishna Bansal

Abstract

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Krishna Bansal

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जंगल एक शब्दचित्र

जंगल एक शब्दचित्र

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प्रात: भ्रमण का मेरा रास्ता 

जंगल से होकर गुज़रता है 

शहर के फैलाव ने इस जंगल को

अपने आलिंगन में ले लिया है 

चारों और बस्ती से घिरा 


यह जंगल शहर के 

फेफड़ों का काम करता है 

सैर के शौकीनों ने कई

पगडण्डियां बना ली हैं 

प्रेमियों ने कई लवर्ज़ कॉर्नर। 


पतझड़ में जंगल 

ठूंठों का समूह बन जाता है 

हर ओर वृक्षों के सूखे पिंजर 

धरती पर गिरे सूखे पत्ते 

एक दूसरे से सटी पत्ता विहीन शाखाएं 

जैसे अपना दुखड़ा रो रही हों

या फिर एक दूसरे को 

ढाढ़स बधां रही हों 

बसन्त आने का।


बसन्त आने पर यह जंगल

हरा-भरा हो जाता है

नए-नए पत्तों से भरी 

टहनियां झूलने लगती है 

हर टहनी मुस्कुराने लगती है

पक्षियों की चहचहाहट 


सुनाई देने लगती है 

पूरा जंगल सुगंधित हो जाता है 

सैर करने वालों की 

संख्या बढ़ जाती है 

मौसम कोई भी हो 

जंगल की अपनी सुंदरता है।


बारिश के मौसम में तो 

जंगल की सुंदरता

देखते ही बनती है

चारों ओर 

हरियाली ही हरियाली 


कुहू कुहू कूकती कोयल 

मीठे गीत गाती चिड़िया 

कूदती फांदती गिलहरी

रंग बिरंगे फूलों की बहार 

रिमझिम बारिश में नहाती हर पत्ती।


 जंगल को पतझड़ में देख

अब इसे बसन्त 

और वर्षा रितु में देख 

मन में विचार उठा 

मौसम आते जाते रहेंगे 

पर जंगल तो वहीं का वहीं है।


इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है

पतझड़- बसंत

वर्षा- शुष्कता

गर्मी- सर्दी 

सच में कुछ भी नहीं। 


सोच आगे बढ़ी

असली व पूर्ण मानव भी तो वह

है जो हर स्थिति में सम है।


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