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Prerna Kumari

Inspirational

5.0  

Prerna Kumari

Inspirational

जंग का मैदान

जंग का मैदान

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माँ की वो स्टेशन पर दी हुई झप्पी

बाबा का वो सिर पर हाथ फेरना

पत्नी की आँखों से अश्कों का बहना

और मेरी तीन महीने की गुड़िया का स्पर्श


ये दृश्य बार बार ज़हन में आ रहा है

और मैं विचलित हो रहा हूँ।

पर क्या मेरा विचलित होना सही है?

नहीं,

नहीं क्योंकि मैं जंग के मैदान में खड़ा हूँ

मेरी जन्मभूमि और मेरी कर्मभूमि

एक इसके दामन में ही तो पला हूँ।

हाँ, मैं जंग के मैदान में खड़ा हूँ।


अपनों से दूर होने का ग़म तो है

आँखों में मगर एक अज़्म तो है

अज़्म कि मैं कर सकूँ बस इतना

बुरी नज़र जो डाले हिन्दुस्तान पर

कर सकूँ बस छलनी उसका सीना


अज़्म कि मैं कर सकूँ बस इतना

कि हर दुश्मनों को मात दूँ

जो कोशिश करे वतन में घुसने की

मौत के घाट उसको मैं उतार दूँ।


मैं हूँ जवान, मुझको मौत से डर नहीं

इस धरा के ख़ातिर कुछ कर सकूँ

उपलब्धि ये मेरे लिए

किसी फक्र से कम नहीं।

जीने का बस ये सार है

जब तक जीयूँ, जीयूँ फक्र से

जब मरुँ भी तो, मरुँ फक्र से

महफूज होकर रह सके ये आवाम सारी

और उनके सीने में हो कोई डर नहीं

मैं खड़ा हूँ जंग के मैदान में

और अब मैं विचलित नहीं।


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