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हर कोई बस चल पड़ा

हर कोई बस चल पड़ा

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वो खिलौनों की दुकान में घुसा

और एक प्यारी सी गुड़िया खरीदी

बहुत ख़ुश दिख रहा था वो

आखिर कल उसकी परी का दूसरा जन्मदिन जो था

उसने घड़ी की तरफ देखा

और फिर तेज़ी से चल पड़ा

अपने घर की ओर

तभी अचानक वो घबराया

सामने से आती कार से

वो जा टकराया

ख़ून से लिपटा हुआ वो

बीच सड़क पर जा गिरा

मदद के लिए उसने गुहार लगाई

वो लोगों की हरकतों को

गंभीरता से देख रहा था

कुछ रुके, कुछ आगे बढ़ गऐ

पर उसकी आँखों में आँसू आ गऐ

जब एक भी हाथ

मदद को नहीं आया

“मेरी परी मेरी राह देख रही होगी “उसने सोचा

और फिर चीखा -चिल्लाया

आँखों में थी उसके आस

मदद करने ज़रुर आऐंगे लोग

था उसे पूरा विश्वास

पर अफ़सोस ,

उसका विश्वास टूट गया

इंसानियत पर से तो शायद

उसका भरोसा ही उठ गया

उसने अपनी आँखेंं बंद कर ली

कुछ पल नहीं ,हमेशा के लिऐ

उन पत्थरदिल लोगों का

फिर भी दिल नहीं पिघला

छोड़ कर उस राही को

हर कोई बस चल पड़ा


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