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jyoti pal

Abstract

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jyoti pal

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जल, प्रकृति और पर्यावरण -२

जल, प्रकृति और पर्यावरण -२

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जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है

मानव, मकान, गली सड़के ऊंचे बनाता रहा है


ट्यूबवैल लगा पानी बर्बाद ,पेड़ करवाता जा रहा है


कभी मेट्रो तो कभी जल सूखा पेड़ कटवा

प्रकृति और पर्यावरण नष्ट करता जा रहा है

वहाँ जगह घेर-घेर कर मकान दुकान बनाता जा रहा है

खुद जल के सूखने पर घर बना रहा है

जल से घर ढह जाए तो बाढ़ को दोषी ठहरा रहा है


मानव खुद पेड़ काट जंगल में घर बना रहा है 

जानवर आ जाते है हमारे घर में यह अफवाह फैला रहा है


जल प्रकृति पर तो अपना पूरा अधिकार जमाया

पर पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी

सिर्फ सरकार की बता रहा है


जो गंदगी फैलाता है खुद,

स्वच्छता का कार्य सफाई कार्मियों की जिम्मेदारी समझा रहा है


अपनी जिम्मेदारीयों से बचता भागता मानव

अपना अधिकार के नाम पर धरती, जल,

प्रकृति और पर्यावरण का इस्तेमाल

कम जरूरत से ज्यादा अंधाधुन बर्बाद करता जा है


ऐसा मानव देश सेवा को सर्वोपरि नहीं मानता है

अरे! वो खुद को इस जहाँ का नहीं मानता है

धर्म के नाम पर कई गलत काम कहाँ मानता है


ऐसा मानव जानवर से भी बदत्तर है

जो जल, प्रकृति, पर्यावरण से काम निकाल

अपने कार्य के पूर्ण होने पर अपनी

कुछ भी जिम्मेदारी कतई नहीं मानता है

सच है! आज घोर कलयुग आ रहा है


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