जिस जगह जागा उस जगह सवेरा
जिस जगह जागा उस जगह सवेरा
कुछ कर के जो ,कुछ धर के जो ।
कुछ लिख के सो ,कुछ पढ़ के सो ।
जिस जगह जागा सबेरे उस जगह बढ़ के सो ।
कुछ हँस के रो ,कुछ लड़ के दोस्त करो ।
समधुर संबंध के लिए मन की ग्लानि गला के जो ।
प्रेम के पथिक हैं हम ,कुछ प्यास मिटा के जो ।
बुनी हुई रस्सी से चकित है दुःख।
खुशबू के शिलालेख से चलो आओ न लिखें अपना सुख ।
जिस जगह जागा होगा सवेरा !
कुछ गमों भी आनंद की मुस्कुराहट मुसकुरा के जो ।
उधर रही है घर पर उम्मीद की एक ईंट लगा के जो ।
कुछ बना के जो ,कुछ सजा के जो ।
जाना है सबको एक दिन मगर किसी की दिल में जगह बना के जो ।
कुछ लिख के सो ,कुछ पढ़ के सो ।
तू जिस जगह जागा सबेरे ,उस जगह से बढ़ के सो ।
जिंदगी मिली है अमूल्य इसे किसी के अमानत कर के जो ।
किसी के लिए जीकर इसे सलामत कर के रहो ।
कुछ कर के जो ।कुछ कर के जो ।
तू जिस जगह जागा उस जगह सवेरा ।।
