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Dev Faizabadi

Abstract

5.0  

Dev Faizabadi

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जिस घर का फौजी हो गया शहीद

जिस घर का फौजी हो गया शहीद

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जिस घर का फौजी हो गया शहीद उस घर कैसी होली होगी।

माँ पापा कब आयेगे जब बिटियांँ मम्मी से ये बोली होगी।


मम्मी बिटियांँ को आखिर झूठी बातें बता रही है।

छुट्टी नहीं मिली पापा को कहकर मुँह छिपा रही है।

चारो तरफ रंगो का आलम पर सूनी उसकी झोली होगी।

जिस घर का।


पहले होली पर मम्मी तू खूब गुझिया, पूड़ी बना रही थी।

हमको और पापा को हँसकर हाथो से अपने खिला रही थी।

सीने से लगा लिया बिटियांँ को बोली तू कितनी भोली होगी।

जिस घर का फौजी।


बिल्कुल बाप पे गयी हो बेटी तुम उनके रूप का मुखडा हो।

नाम करोगी इक दिन पापा का तुम उनके जिगर का टुकड़ा हो।

पत्थर सीने पे रख करके ओ राज़ नही खोली होगी।

जिस घर का फौजी ।


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