ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िंदगी में उतार चढ़ाव का किस्सा कुछ नया नहीं,
रास्तों में आने वाले मोड़ भी कुछ नए नहीं,
हर एक मोड़ पे ज़िंदगी लेती है इम्तेहान,
मसला होता है की उसे छुड़ाए कैसे इंसान,
बच्चों की तालीम की कीमतें हों,
या अस्पताल के चक्कर हों,
रकमों के अदा करने का,
कोई हिसाब ही नहीं रखने को,
रिश्ते तो रिश्ते होते हैं,
जो डोरियों से जुड़ जाते हैं,
कभी मिठास तो कभी कड़वाहट,
सेहत के लिए संतुलन भी तो जरूरी है,
ज़िंदगी गर ज्यादा सुकून से चलने लगे,
इंसान को उसमे ज्यादा शिकायतें होंगी,
दिल की धड़कनो पर ही गौर कर लें साहब,
उतार चढ़ाव तो हमारी धड़कनों में भी हैं,
ज़िंदगी के रास्तो पर मोड़ जाने कितने हों,
मोड़ो को पार करने की कोशिश करके तो देखो,
सीधी लाइन भी कभी भाती है किसी को,
बिस्तर के बाजू के मॉनिटर पर नज़र रख के तो देखो।