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Kumar Kishan

Abstract

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Kumar Kishan

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जिंदगी तुझे क्या समझूँ मै

जिंदगी तुझे क्या समझूँ मै

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ऐ जिंदगी तुझे क्या समझूँ मैं?

समझूँ वेबफा या महबूबा समझूँ मैं

ऐ जिंदगी, तुझे क्या समझूँ मैं

तुझे कोई समझ नहीं पाया है

कहीं तू धूप,तो कहीं छाया है

फिर क्यों, तुझसे हर किसी

को चाहत है?

ऐ जिंदगी, तुझे क्या समझूँ मैं?

समझूँ वेबफा या महबूबा समझूँ मैं

तुझमें कहीं तड़प है

कहीं मिलन,तो कहीं जुदाई है

कितनी खुशियाँ, गम

तुझमे समाए हैं

तू अगर समां है, तो हर

इंसान परवाना है

फिर भी,ऐ जिंदगी तुझे क्या समझूँ मैं?

समझूँ वेबफा या महबूबा समझूँ मैं।



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