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अभिषेक कुमार साह

Tragedy

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अभिषेक कुमार साह

Tragedy

जिंदगी महंगी और दौलत सस्ती

जिंदगी महंगी और दौलत सस्ती

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एक मुद्दत से आरज़ू थी फुरसत की, 

मिली तो इस शर्त पर किसी से ना मिलो।

शहरों का यू वीरान होना कुछ गजब कर गई,

वर्षों परे गुमसुम घरों को आबाद कर गई।


ये कैसा समय आया कि,

दूरियां ही दावाई बन गई।

 जिदंगी में पहली बार ऐसा वक्त आया,

इंसान ने जिंदा रहने के लिए कामना छोड़ दी।


घर गुलजार सुने शहर,

बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई।

आज फिर जिंदगी महंगी,

और दौलत सस्ती हो गई।


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