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Shatakshi Sarswat

Abstract

5.0  

Shatakshi Sarswat

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जिंदगी की राह में चलती गई

जिंदगी की राह में चलती गई

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आँधी, तूफान और बारिशों में बढ़ती गई,

बदलते मौसम के साथ बदलती गई,

जिंदगी की राह में चलती गई।


हवा के झोकों कि बात सुनती गई,

पतझड़ बनके ठहर सी गई,

पर जिंदगी की राह में चलती गई।


पत्थरों से ठोकर खा कर गिर भी गई,

फिर उठकर आगे बढ़ती गई,

जिंदगी की राह मे चलती गई।


पास होके भी लोगों से दूर होती गई,

कुछ कहते-कहते रुक सी गई,

पर जिंदगी की राह में चलती गई।


जिंदगी के असमान को झूने के लिए,

सूरज कि गर्मी में तपती गई,

पर फिर भी जिंदगी की राह में चलती गई।


सारी तकलिफ़ो का सामना

अकेले पार करती गई,

आँसुओ को अपने अन्दर समाती गई,

जिंदगी की राह में चलती गई।


कही-कही हार भी गई लेकिन फिर,

उस मंजिल की चाह

अन्दर समेटे आगे बढ़ती गई,

जिंदगी की राह में चलती गई।


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