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जिंदगी की कीमत

जिंदगी की कीमत

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क्या है मोल जीवन का

ये कैसे नादानी है

उदर उत्तकंठा ने

जान जोखिम मे डाली है।


दंग रह गया देख के मैं

हुयी बड़ी हैरानी है

एक छोटी सी बच्ची

जान हथेली मे लिये

रस्सी पर चलती जाती है।


ये कैसा प्रयोज़न उसका

ये कैसा मनोरथ है

क्षुधा मिटाने के लिये

जीवन से लड़ती जाती है।


पूछ बैठा मैं उस दिन उससे

ये क्या पागलपन है

जीवन का कोई मूल्य नही

जीवन सबसे अनमोल है।


लो पकड़ो ये रूपये

कुछ खा पी लेना

मगर इन रुपयों के लालच से

जीवन को गँवा मत देना।


बोली मुस्काके वह

लो पकड़ो साहेब

ये अपने पैसे

हम गरीब है जरूर

पर भीख नहीं माँगते ऐसे।


मेहनत कर कमाते हैं

पेट अपना पालते हैं

मिला तो सही

वरना भूखे ही सो जाते है।


न होता कोई डर हमें 

न होती कोई लज़्ज़ा

क्योंकि यही है धर्म हमारा

चाहे बुरा हो या अच्छा।


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