जिंदगी खेल तो नहीं
जिंदगी खेल तो नहीं


ज़िन्दगी खेल तो है नहीं,
खेल क्यों तुम बनाते इसे।
ये तो इक प्यार का गीत है,
क्यों इसे गुनगुनाते नहीं।।
कोई कहता ये एहसास है,
दो दिलों की मधुर प्यास है।
फिर हक़ीक़त से तुम भागते,
प्यास क्यों तुम बुझाते नहीं।।
एक दरिया सा है जिंदगी,
जिसमें अनमोल खुशियाँ भरी,
ज़िन्दगी ऐसा दरिया है तो,
फिर क्यों उसमें नहाते नहीं।।
ज़िन्दगी की है यदि रीति ये
हार के बाद ही जीत है।
फिर तो डर है ये किस बात की,
क्यों हार पर मुस्कराते नहीं।।
ज़िन्दगी रंजोगम का सफ़र,
कंटकों से भरी इक डगर।
बात सच है अगर आपकी,
कांटों को क्यों हटाते नहीं।।
ज़िन्दगी एक पुस्तक है जो,
जिसमें रंगीन पन्ने जड़े।
घोलकर कुछ सुनहरे से रंग,
क्यों तुम इसको सजाते नहीं।।
ज़िन्दगी एक ऐसा दीया,
ज्ञान का जो उजाला किया।
बन के तुम तेल बाती इसे,
प्यार से क्यों जलाते नहीं।।