ज़िन्दगी का शाही टुकड़ा
ज़िन्दगी का शाही टुकड़ा
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
कभी नमक ज़्यादा तो चीनी कम
पर शाही टुकड़े सी लगी।
दुख ने सुख को पहचाना
इन दोनो का मेल पुराना
क्या राजा क्या रंक के।
जिसकी झोली में ये जोड़ी ना मिली
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
पर शाही टुकड़े सी लगी।
जीवन तो है आना जाना
किसने क्या ही संग ले जाना
फिर भी हमें क्यों दूसरो के है पड़ी
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
पर शाही टुकड़े सी लगी।
मैं ज़िन्दा हूँ मुझे आज दो सहारा
बाद मेरे ना मिलेगा मौका ये दोबारा
पूरी उमर जो इसी मलाल में ढली।
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
पर शाही टुकड़े सी लगी।
किसी को गिरा के कोई नज़रों से गिर गया
किसी को उठा के कोई रुतबे मे बढ़ गया
ऊंचाइयों पे जाने की एक होड़ सी लगी
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
पर शाही टुकड़े सी लगी।
माफ़ कर देना उसे जिसने
दिल दुखाया हो तेरा
क्योंकि इस जलन और बदले की कभी
कोई सीमा न रही
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
पर शाही टुकड़े सी लगी।
जी लो जितना जीना है
क्योंकि जीवन तो एक
सपना है कल क्या पता
जो इस सपने से आँख ही न खुली
ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली
कभी नमक ज़्यादा तो चीनी कम
पर शाही टुकड़े सी लगी।