जिंदगी हूं
जिंदगी हूं
जिंदगी हूं
थोड़ा हंसती हूं,
थोड़ा मुस्कुराती हूं
थोड़ा किसी बात पर
खुद ही गुस्साती हूं
रूठ जाती हूं खुद ही
फिर खुद ही मान जाती हूं
थोड़ा रो कर ज्यादा
खुद को समझाती हूं
थोड़ा थकती तो कभी
ज्यादा चल जाती हूं
देख लेती हूं लोगो को
तो कभी सुन लेती कभी
अपनी कह सुनाती हूं
थोड़ा बटोर लेती
ज्यादा लूटा आती हूं
थोड़ा झांक लेती भीतर
थोड़ा बाहर भी संवारती हूं
थोड़ा खोकर
ज्यादा आंसू बहाती हूं
थोड़ा पाकर
ज्यादा इतराती हूं
ज़िन्दगी हूं
हां जिंदगी हूं
बेफिक्र जीती और
खुलकर जीना सिखाती हूं।