ज़िंदगी एक पहेली
ज़िंदगी एक पहेली


छोटे पौधों के जैसे,
चिड़ियों के बच्चों के जैसे,
मैं भी एक दिन आया,
एक छोटे बच्चे के जैसे।
पहली बार मैंने कदम बढ़ाया,
पहली बार बोलना सीखा,
और फिर ऐसा मोड़ आया जब,
पहली बार मैं अपने स्कूल गया।
नए लोगों से मिलकर,
कहीं डरकर थम सा गया,
पर कुछ जिगरी दोस्त बने,
और फिर ख़ुशी सा छा गया।
कई साल इन यारों के साथ कटे,
एक समय आया और सब बिछड़ गए,
अब अपनी पढ़ाई पूरी करने,
मैं चला गया एक अनजान जगह।
पहली बार सबसे दूर था,
पर कोई डर न था,
हँसता खेलता रहता,
और कुछ नए लोगों को जान लेता।
क्या पता कब समय बीत गया,
ज़िंदगी का एक और पड़ाव चला गया,
अब अपनी पढ़ाई पूरी कर,
खड़ा हूँ ज़िंदगी के असली इम्तिहान में।
इतनी मेहनत और परीक्षा के बाद,
कई जगह ठोकर खाने के बाद,
ज़िंदगी के कई शर्तों को पूर्ण कर,
एक अच्छी सुकून की ज़िंदगी जी रहा हूँ।
आने वाले कल का पता नहीं,
पर आज मैं बहुत खुश हूँ,
क्योंकि आज मेरी शादी हो गई,
और ज़िंदगी में एक जीवनसाथी मिल गई।
साथ रहकर कई दौर से गुज़रे,
एक दो बच्चे भी हो गए,
समय जैसे कहीं खो सा गया,
और मैं ज़िंदगी के आख़री पड़ाव पे आ गया।
अब शरीर ने साथ देना छोड़ दिया,
प्रतिदिन एक नयी दुविधा,
पर खुश हूँ मैं क्योंकि,
मेरे साथ है मेरा परिवार।
पूरी ज़िंदगी बीत गयी,
हर लम्हे को जी लिया,
ज़िंदगी कभी रुकी नहीं,
और अब अंतिम समय भी आ गया।
धीरे धीरे साँसें बंद हुई,
शरीर से जान चली गयी,
और मैं इस सुंदर जहां को छोड़,
कहीं गुम सा हो गया।