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Tanvvi Agarwal

Others

4.8  

Tanvvi Agarwal

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सुकून

सुकून

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सुकून, कौन है तू?

किधर ढूंढू मैं तुझे?

क्या मिलेगा कभी मुझे?

या कहीं छिपकर ही रह जाएगा मुझसे?


क्या तू छिपा है मेरे बचपन की यादों में?

उन दीवारों पर की कलाकारियों में,

मेरे खिलौनों की खन-खन में,

या बचपन की मासूमियत में।


क्या तू छिपा है मेरे परिवार की परछाइयों में?

मेरी माँ की वो प्यारी सी मुस्कान में,

या मेरे पापा की उन मीठी सी डाटों में,

या हम भाई-बहनों की वो शरारती अंदाज़ों में।


क्या तू छिपा है हम यारों की यादों में?

जिनके बिना स्कूल जानेका मन नहीं करता,

जिनके साथ खट्टी-मीठी बातें किए बिना दिन ना कटता,

और जिनके साथ शरारत करने का मज़ा ही कुछ और होता।


क्या तू छिपा है इस सुंदर प्रकृति में?

बारिश की ठंडी बूँदों में,

तेज़ हवाओं की ताजगी में,

या खिलते फूलों की कलियों में।


क्या तू छिपा है उगते सूरज की किरणों में?

या अंधेरी रात में चाँद की रौशनी में,

सुबह की हलचल में,

या रात की शांति में।


क्या तू छिपा है मेरे मनपसंद गायक की आवाज़ में?

जिन्हें सुनकर दिल भर जाता है,

इस हलचल में राहत दे जाता है,

और चेहरे पे खिलखिलाती चमक छोड़ जाता है।


सब जगह ढूँढ लिया,

आख़िर तू मिल ही गया,

सुकून तू तो हर पल मेरे साथ था,

मेरा हाथ थामे मेरे पास था।


इन सभी छोटी-छोटी बातों में,

ज़िंदगी के अलग-अलग अंदाज़ों में,

बस देर थी की तुझे कहीं ढूँढना नहीं था,

बस अपने अंदर महसूस करना था। 


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