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Shubhi Jhuria

Tragedy Classics

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Shubhi Jhuria

Tragedy Classics

जिंदगी एक किस्सा

जिंदगी एक किस्सा

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जिंदगी की रेस में भागते – भागते,  

खुदको ही कही भूल से गए।

जिंदगी क्या होती है उसका,

मतलब ही कही भूल गए।


उलझनों को सुलझाते हुए,

कब उन ही धागों में जकड़,

कर रह गए।

लोगो के ताने सुनते हुए कब, 

उनसे पत्थर ही बन गए।


यह भाग दौड़ वाली जिंदगी में,

कब कुछ अपने ही खो से गए,

पता भी न चला की,

कब रब ने भी साथ छोड़ दिया।


होश भी न रहा की,

कब हौसला भी टूट सा गया।

मुश्किलों का सिलसिला,

चलता ही रहा,

पर उनसे निकलने का सपना, 

कही सपना ही रह गया।


चुप रहने की आदत कहा थी हमें,

पर अब तो जैसे चुपी ही,

हमारी पहचान बन बैठी।

धोखे इतने खा चुके की,

परछाई से भी दर लगने लगा।


मेरी जिंदगी बस एक, 

छोटा सा किस्सा बनके रह गया।।


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