जिन खोजा तिन पाइयां
जिन खोजा तिन पाइयां
जिन खोजा तिन पाइयां,
गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा
रहा किनारे बैठ।।
हृदय--सागर के तीर पर
बैठी ध्यान लगाए
शायद सुख का कोई मोती
हाथ मेरे लग जाए,
हाथ में मेरे कुछ ना आया
घंटों दिये बिताए
दिल में उठते थे ज्वार
कहीं न पाया उसका पार
खयालों के तो भंवर उठे थे
उपयुक्त शब्द ना कहीं मिले थे
मन पर था मेरे बढ़ा दबाव
भावनाओं का था अत्याचार
झुंझलाहट की हो रही शिकार
डिप्रेशन का था करारा वार
वक्त यूं ही गुजर रहा था,
चारों ओर अंधकार बड़ा था
कशमकश में दिल बेचारा
रहा न कोई और चारा
दिल से तभी आवाज ये आई
ह्दय--सागर में डुबकी मार
मिलेंगे वहां मोती अपार
दिल की बात समझ जब आई
कलम हाथ में तभी उठाई,
हृदय- सागर में
मार के डुबकी
शब्दों के मोती चुन लाई
भावनाओं को शब्दों में ढाला
कविताओं की बनाकर माला
अपनी एक पहचान बनाई
खुद को खुद से खोज
मैं लाई
कबीर दास जी से सीख यह पाई
जिन खोजा तिन पाइयां
गहरे पानी पैठ।।