जिम्मेदारी और सपने
जिम्मेदारी और सपने
एक तरफ जिम्मेदारियों की अभेद्य दीवार,
दूसरी तरफ कल्पनाओं का अद्भुत संसार,
खींच जाता है मन दोनों तरफ ही मेरा,
जीवन लगता है सदा ही पड़ा बीच मझधार।
जिम्मेदारियों से विमुख होना नहीं सीखा कभी,
अपने सपनों को जीऊँ कैसे बताओ सभी,
खुद के सपनों को जीना और मगन होना,
ये भी एक जिम्मेदारी किसी ने न बताया तभी।
अंतर्मन ने मुझे सिखाया सदा ही गुण,
वक्त का कर प्रबंधन और चल अपने धुन,
आत्ममंथन आत्म पोषण दोनों ही जरूरी है,
बिना इसके जिम्मेदारियों को कैसे कर सकते पूर्ण।
हो मन में जब कुछ कर गुजरने की प्रबल चाह,
जिम्मेदारी और स्वप्न दोनों के लिए मिलेगी राह,
राह बनाने के लिए धैर्य से करो जब तुम प्रयत्न,
दिल ही तुम्हारा कहेगा राहें मिल गयी वाह।