Deepali Mathane

Abstract

4  

Deepali Mathane

Abstract

जीवन

जीवन

1 min
222


जीवन महज़ आशा-निराशा की मझधारा है।

मेरे साहिल का ना जाने कौन सा किनारा है।

सूरज की गर्मी की त़पीश से सराबोर जीवन सारा है।

कुछ़ खाली कुछ़ भरकर भी कुछ़ अधूरा है।

लहरों पर उठते तरंग अंतर्मन का हमसाया है।

सपनों से परे हक़ीकत से अनज़ान एक दिल पाया है।

सुबह की किरनें छेडती हैं नीत साज नया।

कोशिशों की गठरीं बाँधे हर दिन रोज़ बीत गया।

कतरा-कतरा जिंदगी बस एक लम्हा प्यार भरा

सुकून का वो पल बस खुशी से भर दे जरा.



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract