STORYMIRROR

Anjneet Nijjar

Abstract

4  

Anjneet Nijjar

Abstract

जीवन

जीवन

1 min
318

अहसासों के दरिया पर शब्दों का पुल बांधती हूँ

हंसी, प्यार, दर्द, तड़प, व्यंजनों में परोसती हूँ

जोड़ती हूँ विविध आयाम,

ज्यामिति के कोणों सी दुरूह जीवन-शैली को

निर्जीव भाषा शिल्प में ढालने का असफल प्रयास करती हूँ


विचारों के रेले को दूर धकेल

मनचाहा गन्तव्य सुनिश्चित करती हूँ

जबकि भली भांति जानती हूँ कि

इस जीवन-रेल की समय सारिणी

अनन्त काल से अनियमित है


समय घड़ियों में नहीं, मन में बीतता है

कितना भागो, कितना पकड़ो,

कितना भोगो, कितना सोचो

काल दो कदम आगे ही दिखता है

कभी कभी जीवटता दम तोड़ने लगती है


अंधकार में विलीन, अदृश्य परछाइयां डराती हैं,

अनजाने ही मन पर हावी हो उठती हैं

एक कमज़ोर क्षण में विश्वास खोने लगती हूँ

पर तभी दो पंछी गुलदाऊदी के पोधे पर


झूमते नज़र आते हैं, उनके वज़न से

पत्तियां झड़ने, टहनियां चरमराने लगती हैं

पर वो बिना सहमे, चहचहाते हैं,

उन्हें अपलक देखती हूँ,


अहसासों के दरिया से जिजीविषा चुनती हूँ और

अपने पंख पसार लेती हूँ

शब्द ढाल नहीं, पुल नहीं, गीत हैं मेरे

बरबस मन के आँगन में घुँघरू से बज उठते हैं

और मैं फिर से उम्मीदों का दामन थाम लेती हूँ !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract