जीवन की सच्चाई
जीवन की सच्चाई
ना मैं राम हूं,
जो मर्यादा पुरुषोत्तम के लिए वन का रास्ता ले लूं,
ना मैं गौतम हूं,
जो जीवन सत्य की खोज के लिए
सब छोड़ छाड़ कर बुद्ध बनने निकल पडूं ,
मैं अशोक भी नहीं,
जो सिंहासन के लिए रक्तपात करूं,
और फिर क्षुब्ध होकर सन्यास धारण कर लूं,
मैं गांधी भी नहीं,
जो सिद्धांतों के रास्ते चलूं ,
और सत्य अहिंसा के लिए हर बार अनशन करूं,
मैं भगत सिंह भी नहीं,
जो क्रांति की लौ दिल में जगाने के लिए
सहर्ष सूली चढ़ूं,
और लोगों की यादों में विस्मृति हो जाऊं,
मैं एक आम आदमी,
जिसे सिद्धांतों से कोई सरोकार नहीं,
जो दु:खी और परेशान है,
अपनी इस भागम भाग जिंदगी से,
इस गले काट प्रतिस्पर्धा से,
जहां दो जून की रोटी जुटाना
उसके लिए एक महा संग्राम है,
और वो बस
छोटी सी जिंदगी का एक छोटा इंसान बन
जिंदगी जीने का प्रयास कर रहा है,
जहां जीना ही सबसे बड़ा संघर्ष है,
क्यों कि इसे जीने में
सारे सिद्धांत
कपोल कल्पित हो कर धरे रह जाते हैं,
और इंसान,
एक मशीनीकृत जिंदगी,
जिसमें उसका खुद कोई बस नहीं होता,
जो बस एक बार शुरू होता है
और
फिर
अंत ही उसका आखिरी होता है।