" जीवन की सांझ "
" जीवन की सांझ "


जीवन की सांझ बेला
आने है लगी
उम्र बढ़ रही
या उम्र घट रही
शायद यह बतलाने लगी
कभी मधुर स्मृतियों संग
हम हॅंसते खिलखिलाते हैं
कभी बिछड़े अतीत की
यादों में गुम हो जाते हैं
कैसे गुजर जाते हैं
जीवन के ये पड़ाव
हंसते खेलते गुजरता बचपन
जिम्मेदारियों भरी जवानी
कभी दर्द कष्ट से भरी
शायद बुढ़ापे की निशानी
कभी लोग कल्पना से घबराते
कभी हंसी-खुशी जीवन बिताते
जीवन की यह अबुझ सांझ
कहाँ लोग समझ हैं पाते
जीवन सांझ में खुश रहकर
अपने अवसादों को दूर कर
अपने अनुभव सारे बांट दो
अपने इस जीवन संध्या को
ख़ुशियों से भर दो
घर परिवार और समाज को
हमसे है जो मांग
आओ उसको बांट दें
सब के संग खुश रहकर
उन्हें ख़ुशियों से पाट दें
भुलाकर अपने दुख दर्द
इसे बना ले खुशनुमा
लोग जीवन संध्या की
कल्पना से है घबराते
अति सोचकर जिंदगी
खुल कर जी ना पातें
क्यूं हम घबराए
जीते जी क्यूं मर जाए
इसका खुलकर करें सामना
हर सुख दुख को भी थामना
जीवन में हर मोड़ तो आनी है
आकर एक दिन गुजर जानी है
पर अपने कदमों के निशां
हमें यही छोड़ जानी है