।। जीत ।।
।। जीत ।।
रुक ना जाना तू कहीं,
सुन कर ज़माने की सदा ,
ना ही समझना जो मिला,
बस वो ही किस्मत था बदा ।।
चोट पड़ कर ही संग की ,
किस्मत बदलती है यहां ,
पूजता है फिर बुत बना कर ,
उसको तब ये सारा जहां ।।
ये जो इल्म तुझमें है बसा ,
अब बाजार में मिलते कहाँ ,
अम्बुज है तू ये भूल मत ,
जो पंक में खिलते यहाँ ।।
तुझको विधाता से मिला जो ,
वो सब तेरा अधिकार है ,
एक हार कैसे हो पगकड़ी ,
जब ये जीतना संसार है ।।
उठ निकल तू संधान कर,
गांडीव पर रख श्रम के शर,
हुंकार से अब नभ हिले ये ,
निज कर्म का आव्हान कर ।।
प्रकृति की उन्नत रचना हो तुम ,
परमार्थ पर ना अभिमान हो ,
है मनुज रूप में लिया जन्म ,
तो हर सामर्थ का सम्मान हो ।।
खुद ही निर्धारित तुम करो ,
साहिल और उसकी वो डगर ,
ज्ञान अनुभव प्रेरणा हो ,
कुछ करुणा भी हो उस में मगर ।।
नेपथ्य में बजता हुआ अब ,
उत्साह का ही गीत हो ,
जो इरादे हों दिल में पक्के ,
हर पग तुम्हारी जीत हो ,
हर पग अब तुम्हारी जीत हो।