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Dinesh paliwal

Inspirational

4.5  

Dinesh paliwal

Inspirational

।। जीत ।।

।। जीत ।।

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रुक ना जाना तू कहीं,

सुन कर ज़माने की सदा ,

ना ही समझना जो मिला,

बस वो ही किस्मत था बदा ।।

चोट पड़ कर ही संग की ,

किस्मत बदलती है यहां ,

पूजता है फिर बुत बना कर ,

उसको तब ये सारा जहां ।।

ये जो इल्म तुझमें है बसा ,

अब बाजार में मिलते कहाँ ,

अम्बुज है तू ये भूल मत ,

जो पंक में खिलते यहाँ ।।

तुझको विधाता से मिला जो ,

वो सब तेरा अधिकार है ,

एक हार कैसे हो पगकड़ी ,

जब ये जीतना संसार है ।।

उठ निकल तू संधान कर,

गांडीव पर रख श्रम के शर,

हुंकार से अब नभ हिले ये ,

निज कर्म का आव्हान कर ।।

प्रकृति की उन्नत रचना हो तुम ,

परमार्थ पर ना अभिमान हो ,

है मनुज रूप में लिया जन्म ,

तो हर सामर्थ का सम्मान हो ।।

खुद ही निर्धारित तुम करो ,

साहिल और उसकी वो डगर ,

ज्ञान अनुभव प्रेरणा हो ,

कुछ करुणा भी हो उस में मगर ।।

नेपथ्य में बजता हुआ अब ,

उत्साह का ही गीत हो ,

जो इरादे हों दिल में पक्के ,

हर पग तुम्हारी जीत हो ,

हर पग अब तुम्हारी जीत हो।



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