जीत की भूख
जीत की भूख
जीत की भूख,
हिंसक बना देती है,
विचारों में,
कहीं कहीं ,
अभिव्यक्तियों में भी।
महसूस किया,
कि हर बार जुनून,
तारी हो जाता है बेतरह,
मुंशी से जहन में,
की हिसाब तो रखना ही है,
हर जीत का ,
हर जीत के मौके का।
बेचैनी ,
हांफती जिंदगी की,
अगले उस पल की जिसमे
जीत का तमगा ढूढती आंखें
टकराती रहती है
उन मासूम एहसासों से
जिन्हें कोई दिक्कत नहीं
किसी भी जीत से।
मगर हर बार ही
बेदम हो जाती है कहीं
छोटी छोटी ख्वाहिशें
पीछे भागते तुम्हारे
लेकिन तुम्हारी ये दौड़
जीत की
कभी खत्म नहीं होती।
चलो जीत जाओ
बस उदास मत हो जाना
जीत के बाद।