STORYMIRROR

Asha Pandey 'Taslim'

Inspirational

3  

Asha Pandey 'Taslim'

Inspirational

जीत आई हूँ मैं

जीत आई हूँ मैं

1 min
202


आज इत्तेफ़ाकन सावन का

आख़िरी सोमवार था

जैसे रमज़ान का अलविदा जुमा 

कहते हैं आख़िरी जुमे को 

कुछ अलग असर होता है

आज मैने भी अलविदा कहा

मन से 

इस दिखावटी ज़िन्दगी को

इस एशो आराम को

उस झूठे तमगे को 

जिसे गले में लटकाये 

मैं घूम रही थी अभी तक

ग़जब का असर दिखा

इस तमगे को उतारते ही 

मेरी गर्दन जो बोझ से झुकी

रहती थी

वो सम्मानित होकर तन गई


स्वाभिमान से बोझ का दर्द भी ख़त्म 

अब दिल गहरी सांस नहीं ले रहा 

लेकिन सुकून से है

आज मन से मैं आज़ाद हो गई हूँ

अब कोई तन को क्या ही बांधे

आज कुछ छोड़ा है 

आज ही कुछ पाया है मैंने 

इस जोड़ घटाव में 

सब हार कर खुद को जीत आई हूँ मैं 

ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर

जी आई हूँ मैं।



ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

More hindi poem from Asha Pandey 'Taslim'

जड़

जड़

1 min ପଢ଼ନ୍ତୁ

कविता

कविता

1 min ପଢ଼ନ୍ତୁ

मसीहा

मसीहा

1 min ପଢ଼ନ୍ତୁ

फ़न

फ़न

1 min ପଢ଼ନ୍ତୁ

आरजू

आरजू

1 min ପଢ଼ନ୍ତୁ

Similar hindi poem from Inspirational