" जीओ और जीने दो "
" जीओ और जीने दो "
अपने सुख की कामना में जीते
पर पीड़ा को ताक पर रखते.
नीति अनीति को छोड़ चुके हम
सद्भावों को भुला बैठे हम.
ऐसा कितने दिन चलेगा
जीवन दूभर हो जाएगा
छोडो यह सारा झमेला
जीओ और जीने दो भाव अपनाओ
खुशियाँ चंहुओर बिखराओ.
छोड़ अभिमान, माने गलती
फिर ना कोई बात चूभती
सरलता, सहजता जीवन में आती
हर रिश्ता - नाता खुशियाँ लाता.
ईष्ट देव है "राम " हमारे
फिर रावण क्यों मन में पलता?
"कन्हैया" सबको प्रेम सीखाता
फिर कंस भाव क्यों हम लाते?.
सच्चाई की राह चलें हम
सबकी राहों के "दीप " बने हम
जीओ और जीने दो का उजियारा
चंहुदिस फैले, ऐसे चोखे काम करें हम.