जीने की वजह
जीने की वजह
तप्त रेगिस्तान में
या गहन अंधकार में
जिंदगी के जंगल में
निराशा के कूप में
बेवफ़ाई के जाल में
धोखे के मकड़जाल में
अविश्वास के खेल में
नफरतों के ढेर में
किसी जाल में फंसे पक्षी सा
फड़फड़ाता जीवन
मृत्यु को मान प्रियतमा
कर देना चाहता अंत
जीवन की समस्याओं का
तब चमकती एक चिंगारी
अंतस में कर देती उजास
जो होती जिजीविषा
खींच लेती मनुष्य को
समस्त मायाजाल से
बनकर जीने की वजह
हां, तभी तो कट जाते
नश्तर से चुभते वो पल
हार जाता वक्त भी
उस जिजीविषा के समक्ष
जो बन कर प्रेरणा
बन जाती जीने की वजह।
