जी ली गई जिन्दगी
जी ली गई जिन्दगी
आती हो चित्रकारी तो तुझे कैनवास पर उकेर दूँ,
आती हो कविता तो तुझे सुंदर शब्दों में बदल दूँ
तुम रंग नहीं मेरे लिये, कि लाल हरे पीले नीले,
गुलाबी भूरे काले, सीमित रंगों में तुम्हें समेट सकूं।
तुम वर्णमाला के अक्षर भी तो नहीं हो,
कि तुम्हें स्वर व्यंजन में विभाजित कर दूँ।
तुम खुशी हो पैदा होने की, तुम रुदन हो भूख की,
तुम खुशी हो खिलौने की, तुम चिंता हो परीक्षा की।
फूटे घुटने, फटी पैंट, खरोंच हो तुम।
लूडो, पतंग, कैरम और क्रिकेट हो।
तुम जिद हो एक अदद साईकिल की,
तुम गर्ल फ्रेंड के गिफ्ट की टेंशन हो।
तुम कॉलेज की बंक की गई क्लास हो,
तुम बाईक में बैठ घूमने वाली दोस्त हो।
तुम कम्पीटीशन इग्जाम की असफलता हो,
जो ना मिली, उस नौकरी का अफसोस हो।
बिजनेस का स्ट्रगल हो यार तुम,
उधार पर सुने ताने हो जान तुम।
मिली हर छोटी मोटी सफलता तुम ही तो हो,
और हर बड़ी असफलता भी तो तुम ही हो।
दर्द हो तुम, अपमान हो तुम, टूटे सपने हो,
मिला हर सम्मान और प्यार भी तुम ही हो।
दुःख में निकला हुआ हर आँसू तुम हो,
मस्ती में भरी मुस्कान भी तो तुम ही हो।
तुम उम्मीद हो, तुम सफर हो, तुम गम हो,
लिख सकूँ जितना तुमको उतना ही कम हो।
अरे मेरी जान, जनेमन, जाने जीगर,जाने जहाँ,
तुम साया हो मेरा, मेरी जी ली गई जिंदगी हो।