झूठी है वो
झूठी है वो
वफ़ा दग़ा से भरी की शुरु झूठी है वो
मुहब्बत की कर गया गुफ़्तगू झूठी है वो
नसीब ने दिल को ऐसा दिया धोखा मेरे
सभी दिल की मेरे निकली आरज़ू झूठी है वो
निराश होकर लौटा इसलिए तन्हा मैं तो
वफ़ाओ की मंजिले जुस्तजू झूठी है वो
दरार पड़ जाये यारी में तेरी मेरी ही
चली जो भी बातें है चार सू झूठी है वो
की झूठ बोलने के सिवा नहीं आता कुछ
नहीं बैठी है कभी रु - ब -रु झूठी है वो
निगाहों के देख लिए है फ़रेब उसके ही
मुहब्बत की ही भरी गुफ़्तगू झूठी है वो
उधड़ गयी चोट आज़म दग़ा की मेरी तो
मुहब्बत की ही करी जो रफ़ू झूठी है वो।
