जहाँ नीलकंठ विराजे वहीं धाम
जहाँ नीलकंठ विराजे वहीं धाम
बदन में मले भभूत,
भोलेनाथ अवधूत !
भोले शिव महादानी,
डरते उनसे हैं यमदूत !
शंकर शिव महाकाल हैं ,
तीन नेत्र उनके भाल हैं !
कार्तिकेय गणेश लाल हैं,
शिवपाठ से मिटते बबाल हैं !
काम क्रोध को किया अनंग,
महेश्वर नीलकंठ हैं शुभँग !
नीलकंठ के स्याह हैं अंग,
शीश शुभ्र सोहे मुकुट भुजंग !
व्यापक हैं जटाधारी वेद रूप,
समृद्धि व सुख देते हैं अनूप !
महिमा शिव जी की ऐसी,
उनकी सेवा करें सुर भूप !
भक्तगण जपते शिव का नाम,
कृपा करें भगवन कृपा निधान !
अर्धांगिनी गौरा उनके वाम,
जहाँ शंकर वहीं चारों धाम !