जग को रचती मां
जग को रचती मां
अनेकों रूप है एक मां के,
संसार रचता और फलता है एक मां से,।।
अपने बच्चो के लिए वो बन जाती है ढाल,
मजबूती से खड़ी रहती है मां चाहे जैसे भी हो हालात,
दुख में भी सुख खोजती है वो,
घर आंगन को खुशहाली से भर देती है वो,।।
अनेकों रूप है एक मां के,
संसार रचता और फलता है एक मां से,।।
एक ठंडक मां के आंचल में है,
एक अलग स्वाद मां के हाथ से खाना खाने में है,
मुश्किलों में वो साहस रखना है सिखाती,
एक मां दुनिया से हमे रूबरू है कराती,।।
अनेकों रूप है एक मां के,
संसार रचता और फलता है एक मां से,।।
चोट लगे जो कभी तो मां के अपने घरेलू नुस्खे है,
एक रोज़ हमने मां के बचपन के किस्से भी सुने है,
मां को भी कच्चे आम खाना और गुड़ियों से खेलना पसंद है,
पर अब वो गृहस्ती और हम सबकी देखभाल में व्यस्त है,।।
अनेकों रूप है एक मां के,
संसार रचता और फलता है एक मां से,।।
अंधेरा हो जब चुनौतियों का तो सब्र का सवेरा है मां,
एक बहती झील है मां,
मां से जो भी चीज मांगी वो मिल गई,
रिश्ते संभालते और सवारते मां खुदकी
चाहतों को भूल गई,।।