जग आगमन सार्थक तभी
जग आगमन सार्थक तभी
जग आगमन सार्थक तभी,
श्रम करके कुछ करें सृजन।
उद्देश्य करके ही तो पूर्ण निज,
प्रभु चरणों में हम करें नमन।
वरदान प्रभु का है ये मनुज तन,
उत्कृष्ट योनि लख चौरासी में है।
भटकाएं न मन कहीं और हम,
दृष्टि हर कर्म तो अविनाशी में है।
पाया है सब कुछ जगत से ही तो,
अर्पण हो जग को ही तन और मन।
उद्देश्य करके ही तो पूर्ण निज,
प्रभु चरणों में हम करें नमन।
जग आगमन सार्थक तभी,
श्रम करके कुछ करें सृजन।
उद्देश्य करके ही तो पूर्ण निज,
प्रभु चरणों में हम करें नमन।
करना है करें रहते हुए शक्ति के,
है सशक्त जब तक तन और मन।
रह जाएगा पछतावा ही शेष बस,
गंवाया समय न कुछ किया सृजन।
करते रहें ऐसे सतत् ही प्रयास हम,
मंगल सबका हो और हों प्रसन्न जन।
उद्देश्य करके ही तो पूर्ण निज,
प्रभु चरणों में हम करें नमन।
जग आगमन सार्थक तभी,
श्रम करके कुछ करें सृजन।
उद्देश्य करके ही तो पूर्ण निज,
प्रभु चरणों में हम करें नमन।